Sunday, August 19, 2012

रूह की कब्

किसे कहूं हाल-इ-दिल, कौन समझेगा?
किसे दिखाऊँ ज़ख्म दिल के, मरहम कौन करेगा?
इस दास्ताँ को मेरी कौन पढ़ेगा?

हसीन यादो का
जो सज न सके उन ख़्वाबों का
जो किये न कभी उन वादों का
ज़माने से टकराने के इरादों का
क़त्ल कर आया हूँ
उस कहानी को अभी अभी
दफ़्न कर आया हूँ

दिल मेरा अब जैसे रेगिस्तान है
कई दफन जस्बातों का कब्रिस्तान है
पर मौत पूरी तरह आई कहाँ है
हर बात पे डाल दी मिट्टी मग़र क्म्भक्त
उम्मीद जवां है
उम्मीद की तुम कभी आओगी
मेरी रूह की कब्र पर एक फूल चढ़ा जाओगी!!

** ये पढ़कर वो बोले
की हममे तो दफनाया नहीं जलाया जाता है?
रूह दफ्न है तुम शरीर जला देना !!

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