Tuesday, August 7, 2012

क्यूँ?

कई बार खुदसे मैं ये सवाल करता हूँ
क्यूँ तुमसे मैं इतनी मोहब्बत करता हूँ
क्या है ऐसा तुम में जो मैं दीवाना हो गया हूँ
क्यूँ अपने आप से यूँ बेगाना हो गया हूँ 

क्यूँ ये तमन्ना है की आसमान से
तारे तोड़ तुम्हारी झोली मैं डाल दूं
क्यूँ ये आरज़ू की फूलों से तुम्हारी राहें सजा दूं 
कई बार खुदसे मैं ये सवाल करता हूँ
क्यूँ तुमसे मैं इतनी मोहब्बत करता हूँ

क्यूँ जब भी मौसम बाघों मैं फूल खिलाता है
मुझे तुम्हारा मुस्कुराना याद आता है
क्यूँ जब भी बसंती हवाएं आती हैं
साथ अपने तुम्हारी खुशबू लाती है 
क्यूँ जब भी चौदव का चाँद उपक निकलता 
मुझसे उसमे तुम्हारा चेहरा दीखता है
क्यूँ हर शाम तुम्हारे सपने दिखाती है
हर सुबह तुम्हारी आस जगाती है
कई बार खुदसे मैं ये सवाल करता हूँ
क्यूँ तुमसे मैं इतनी मोहब्बत करता हूँ ।

क्यूँ हर रंग तुम्हारे रंग मैं रंगा हुआ लगता है
क्या ये सच है की तुम्हारी इज़ाज़त से इन्द्रधनुष निकलता है?
क्यूँ आजकल वक़्त बेवक्त ये सावन बरसता है
देखो तुम्हारे स्पर्श को आसमान भी तरसता है
क्यूँ ये कोयल इतने मधुर गीत गाती है
शायद अपने संगीत  से तुम्हे लुभाना चाहती है
क्यूँ हर अमावास को वो चाँद छिप जाता है
शायद मेरे महबूब वो तुमसे शर्माता है
कई बार मेरी धड़कन मुझसे सवाल करती है
क्यूँ तुमको देख इतनी जोर से धड़कती है

क्या कहें जबसे तुमसे मोहब्बत हुई है
न जाने कहाँ से इतनी हिम्मत मिल गयी है
कल तक जो न था मंजिल का दूर तक नज़ारा
अब ढूँढने लगा हूँ मझधार में किनारा
क्यूँ मुझको तुमपे इतना ऐतबार है
तुम्हारे इकरार को ये दिल बेक़रार है
न जाने क्यूँ मुझे तुम से इतना प्यार है

इन मोहब्बत की गलियों में दीवानों सा भटकता हूँ
हर कदम हर मोड़ पे में तुम्हे ढूंढता हूँ
इन उल्फत की राहों मैं इस कदर खो गया हूँ
तुमसे वफ़ा की चाहत मैं खुदसे बेवफा हो गया हूँ
तो क्या अगर मुझपे हँसता ज़माना आज है
मुझे फिर भी अपनी दीवानगी पर नाज़ है
पर बार बार में खुदसे ये सवाल करता हूँ
क्यूँ तुमसे में इतनी मोहब्बत करता हूँ 






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