मुझ बोल दो मेरे सनम
दर से तेरे जाऊं कहाँ
कोई रास्ता दीखता नहीं
मंजिल का न कोई निशाँ
चल लिया अंगारों पर
दरिया का कोई दर नहीं
तू मिले एक पल भी तो
डूब जाने की फिकर नहीं
मुझे बोल दो उस पार बस
मिलोगी मुझको तुम वहीँ
अब तलाश बस हर वक़्त है
कोई रास्ता दीखता नहीं
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