Sunday, February 19, 2023

रुकी हुई कलम

कल से एक कविता फंसी है,

कलम में जैसे श्याही जमी है।

खयाल ज़ेहन खंगाल रहा है,

लव्सो की पोटली पे गांठ लगी है।


बालकनी कितनी बार नाप ली,

हवा में कितने छल्ले छोड़े हैं,

कहीं से कोई पैगाम आ जाए,

चलते हुए कोई नब्ज दब जाए,

खुल जाए गांठ मुक्कमल हो जाए,

जो कविता मुझसे रूठी खड़ी है l

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